3 जून 2015 जार्ज की 85वें जन्मदिवस पर
आज (3 जून 2015) बागी लोहियावादी जार्ज मैथ्यू फर्नाण्डिस पच्चासी के हो गये हैं। पर उन्हें पता नहीं है। स्मृति लोप के कारण। जिस युवा समाजवादी द्वारा बन्द के एक ऐलान पर सदागतिमान, करोड की आबादीवाली मुम्बई सुन्न पड़ जाती थी। जिस मजदूर पुरोधा के एक संकेत पर देष में रेल का चक्का जाम हो जाता था। जिस सत्तर वर्षीय पलटन मंत्री ने विष्व की उच्चतम रणभूमि कारगिल की अठारह बार यात्रा कर मियां परवेज मुर्षरफ को पटकनी दी थी। सरकारें बनाने-उलटने का दंभ भरनेवाले कार्पोरेट बांकों को उनके सम्मेलन में ही जिस उद्योग मंत्री ने तानाषाह (इमर्जंेसी में) के सामने हड़बड़ाते हुये चूहे की संज्ञा दी, आज वही पुरूष सुधबुध खोये, दक्षिण दिल्ली के पंचषील पार्क मेे क्लांत जीवन बसर कर रहा है। आस पडोसवाले पता भी नही बता पाते। लेकिन जार्ज के देषभर में फैले मित्र याद करते हैं, नम आँखों से। विषेषकर श्रमिक नेता विजय नारायण (काषीवासी) और साहित्यकार कमलेष शुक्ल जो मेरे साथ तिहाड जेल में बडौदा डायनामाइट केस में जार्ज के 24 सहअभियुक्तों में रहे। अपने बावन वर्षों के सामीप्य पर आधारित स्मृतियां लिये एक सुहृद्र को याद करते मेरे इस लेख का मकसद यही है कि कुछ उन घटनाओं और बातों का चर्चा हो, जो अनजानी रहीं। काफी अचरजभरी रही।
मसलन यही जून का महीना था। चालीस साल बीते। इन्दिरा गांधी का हुकुम स्पष्ट था सी.बी.आई. के लिये कि भूमिगत जार्ज फर्नाण्डिस को जीवित नहीं पकड़ना है। दौर इमर्जेंसी का था। दो लाख विरोधी सीखचो के पीछे ढकेल दिये गये थे। कुछ ही जन नेता कैद से बचे थे। नानाजी देषमुख, कर्पूरी ठाकुर आदि। जार्ज की खोज सरगर्मी से थी। उस दिन (10 जून 1976) की शाम को बडौदा जेल में हमें जेलअधीक्षक ने बताया कि कलकत्ता में जार्ज को पकड़ लिया गया है। तब तक मैं अभियुक्त नम्बर एक था। मुकदमों का शीर्षक भारत सरकार बनाम मुलजिम विक्रम राव तथा अन्य था। फिर क्रम बदल गया। जार्ज का नाम मेरे ऊपर आ गया। तिहाड़ जेल में पहुँचने पर साथी विजय नारायण से जार्ज की गिरफ्तारी का सारा किस्सा पता चला। कोलकता के चैरंगी के पास संत पाल कैथिड्रल है। बडौदा फिर दिल्ली से भागते हुये जार्ज ने कोलकता के चर्च में पनाह पाई। कभी तरूणाई में बंगलौर में पादरी का प्रषिक्षण ठुकरानेवाले, धर्म को बकवास कहनेवाले जार्ज ने अपने राजनेता मित्र रूडोल्फ राड्रिक्स की मदद से चर्च में कमरा पाया। रूडोल्फ को 1977 में जनता पार्टी सरकार ने राज्य सभा में एंग्लो-इण्डियन प्रतिनिधि के तौर पर मनोनीत किया था। सभी राज्यों की पुलिस और सी.बी.आई. के टोहीजन षिकार को सूंघने में जुटे रहे। षिकंजा कसता गया। चर्च पर छापा पड़ा। पादरी विजयन ने जार्ज को छिपा रखा था। पुलिस को बताया कि उनका ईसाई अतिथि रह रहा है। पर पुलिसिया तहकीकात चालू रही। कमरे में ही एक छोटे से बक्से में एक रेलवे कार्ड मिला। वह आल-इंडिया रेलवेमेन्स फेडरेषन के अध्यक्ष का प्रथम एसी वाला कार्ड पास था। नाम लिखा था जार्ज फर्नाण्डिस। बस पुलिस टीम उछल पड़ी, मानो लाटरी खुल गई हो। तुरन्त प्रधानमंत्री कार्यालय से संपर्क साधा गया। बेषकीमती कैदी का क्या किया जाए ? उस रात जार्ज को गुपचुप रूसी फौजी जहाज इल्यूषिन से दिल्ली ले जाया गया। इन्दिरा गांधी तब मास्को के दौरे पर थीं। उनसे फोन पर निर्देष लेने में समय लगा। इस बीच पादरी विजयन ने कोलकता में ब्रिटिष और जर्मन उपराजदूतावास की बता दिया कि जार्ज कैद हो गये है। खबर लन्दन और बाॅन पहुंची। ब्रिटिष प्रधान मंत्री जेम्स कैलाघन, जर्मन चांसलर विली ब्राण्ड तथा नार्वे के प्रधानमंत्री ओडवार नोर्डी जो सोषलिस्ट इन्टर्नेषनल के नेता थे ने एक साथ इन्दिरा गांधी को मास्को में फोन पर गंभीर परिणामों से आगाह किया यदि जार्ज का एनकाउन्टर कर दिया गया तो। वर्ना जार्ज की लाष तक न मिलती। गुमषुदा दिखा दिया जाता। वे बच गये और तिहाड़ जेल में रखे गये।
जार्ज की राजनेतावाली ओजस्विता तिहाड़ जेल में हमारे बड़े काम आयी। दषहरा का पर्व आया (अक्टूबर 1976)। तय हुआ कि अखण्ड मानस पाठ किया जाय। पूर्वी रेल यूनियन के नेता महेन्द्र नारायण वाजपेयी ने संचालन संभाला। मानस की प्रतियां भी आ गई। आसन साधा गया। मुष्किल आई कि हम हिन्दू जन केवल आधे-पौन घंटे की क्षमतावाले ही थे। कमसे कम दो तीन घंटे का माद्दा केवल जार्ज में था। आखिर श्रमिक रैली, चुनावी सभाओं और लोकसभा में भाषण की आदत तो थी ही। तय हुआ कि जार्ज को पाठ के लिए चैबीस में से बारह घंटे चार दौर में आवंटित किये जाये। शेष हम बारह लोग एक एक घंटे तक दो किष्तों में पाठ करें। इसमें थे सर्वोदयी प्रभुदास पटवारी जो तमिल नाडु के राज्यपाल बने और प्रधानमंत्री फिर बनते ही इन्दिरा गांधी ने उन्हें बर्खास्त कर दिया था। स्वर्गीय वीरेन शाह थे। नामी गिरामी उद्योगपति और भाजपाई सांसद जो पष्चिम बंगाल के राज्यपाल रहे। दोहों के उच्चारण, लय तथा शुद्धता में कमलेश शुक्ल माहिर रहे। आखिर पूर्वी उत्तर प्रदेष के विप्रषिरोमणि है। विजय नारायण, महेन्द्र नारायण वाजपेयी, वकील जसवंत चैहान बड़े सहायक रहे। तभी भारतीय जनसंघ (तब भाजपा जन्मी नहीं थी) के विजय मलहोत्रा, मदनलाल खुराना और प्राणनाथ लेखी, अकाली दल के प्रकाष सिंह बादल आदि भी हमारे सत्रह नम्बर वार्ड मंे यदाकदा आते थे। एक बार हम सब को भोजन करते समय ये राजनेता ”त्वदीयम् वस्तु गोविन्दम्“ उच्चारते देखकर अचरज में पड़ गये। वे समझते थे कि लोहिया के अनुयायी सब अनीष्वरवादी होते हैं।
लोहिया का चेला हो और विवादित व्यक्तित्व वाला न हो ? नामुमकिन। भ्रष्टाचार के तीन भयंकर आरोप लगे थे जार्ज़ पर। कारगिल के शहीदों की लाषें लाने के लिये विदेष से अल्मूनियन के ताबूत का आयात किया गया। आरोप था कि इनकी खरीद में लूट हुई है। जार्ज को सोनिया गांधी ने कफन चोर कहा था। तहलका ने एक स्टिंग आपरेषन में शस्त्रों की खरीद में दलाली का आरोप दिखाया। इस्राइल से शस्त्र खरीदने में भी रिष्वत का आरोप लगाया गया। सबकी सी.बी.आई. ने जांच की। रक्षा विषेषज्ञ ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जो बाद में राष्ट्रपति बने ने गवाही दी थी। सोनियानीत यूपीए सरकार ने चार वर्ष तक जांच टाला। अन्ततः सी.बी.आई. ने तीनों मामलों में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को बता दिया कि जार्ज फर्नाण्डिस निरपराध हैं, दोषमुक्त करार दिये गये।
मुम्बई की चैपाटी के बैंचो पर खुले आसमान तले जवानी बिता देने वाले विपन्न जार्ज फर्नाण्डिस का मुम्बई महानगर पालिका के पार्षद से लोकसभा पहुँचने का किस्सा भी इतिहास का दस्तावेज है। मुम्बई में चार लोकसभाई चुनावों (1967) में सबसे ज्यादा दिलचस्प था दक्षिण मुम्बई मंे। बेताज के बादषाह, नेहरू काबीना के वरिष्ठ मंत्री एस.के. पाटिल का सामना था नगर पार्षद और श्रमिक पुरोधा जार्ज फर्नांडिस से।
तीनों लोक सभाओं के चुनाव में अपार बहुमत से जीतनेवाले सदाषिव कान्होजी (सदोबा) पाटिल चैथी बार दक्षिण मुम्बई क्षेत्र से कांग्रेस के प्रत्याषी थे। इन्दिरा गांधी काबीना में वे दमदार मंत्री थे। बात दिसम्बर 1966 की है। सदोबा पाटिल से मिलने हम संवाददाता प्रदेष कांग्रेस कार्यालय मंे खबर की खोज में गये। उन्होंने विदेष नीति से लेकर खाद्यनीति तक अपने पाण्डित्यपूर्ण विचार बेलौस व्यक्त किये हालांकि ये विषय उनके केन्द्रीय मंत्रालय से नहीं जुड़े थे। बयान तब भाषणनुमा हो रहा था। तभी मैंने उनसे पूछा कि लोकसभा के चुनाव की घोषणा चन्द हफ्तों में होने वाली है। आप क्या फिर दक्षिण मुम्बई से ही उम्मीदवारी करेंगे। कुछ अचंभे के साथ वे बोले – ”और कहां से फिर ?“ मैंने पूछा कि ”यूँ तो आप अजेय हैं, पर इस बार लोहियावादी जार्ज फर्नांडिस आपको टक्कर देनेवाले है।“ तनिक भौं सिकोड कर पाटिल बोले, ”कौन है यह फर्नांडिस ? वही म्युनिसिपल पार्षद ?“ मेरा अगला वाक्य था, ”आप तो महाबली है। आपको तो बस आपसे भी बड़ा महाबली ही हरा सकता है।“ कुछ मुदित मुद्रा में वे बोले, ”मुझे तो भगवान भी नही हरा सकते है।“ उस जमाने में रिपोर्टरों के पास टेप रिकार्डर नहीं होता था। अतः जैसे ही बयान पर विवाद उठा कि राजनेता साफ मुकर जाते थे और हम रिपोर्टरों की शामत आती थी। इसीलिये बाहर निकलकर मैने अपने संवाददाता साथियों से नोट्स मिलाये। तय हुआ कि हमसब की रपट का इन्ट्रो (प्रथम पैराग्राफ) होगा कि सादोबा पाटिल ने कहा कि ”भगवान भी उन्हें नही हरा सकता है।“ अगली सुबह मुम्बई के सभी दैनिकों में यही सुर्खी थी। जार्ज, जिनका पार्षद कार्यालय मेरे आफिस टाइम्स आॅफ इण्डिया भवन से लगा हुआ था, से मैं मिला और उन्हें हिन्दु भगवानों के अवतार के किस्से बतायें। फिर कहा कि वह वामनावतार ले और विरोचनपुत्र दैत्यराज महाबली बलि (पाटिल) से भिडे। जार्ज तब सैंतीस वर्ष के थे। श्रमिक पुरोधा थे। तय कर लिया सब साथियों ने पाटिल को टक्कर दी जाये। यह कहानी थी दिये की और तूफान की। अभियान सूत्र मात्र एक वाक्य था: ”पाटिल कहते है कि उन्हें भगवान भी नहीं हरा सकता है।“ फिर इसके बाद सात किष्तों मंे पोस्टर निकले। पहला था, ”क्या पाटिल को साक्षात परमेष्वर भी नहीं हरा सकते ?“ और अन्तिम पोस्टर था, ”अब मुकाबला पाटिल बनाम आमजन है।“ फिर मतदान के परिणाम आये। जार्ज को 48.5 प्रतिषत वोट मिले। परमषक्तिषाली महाबलवान अहंकारी अजेय एस.के. पाटिल चालीस हजार वोटों से हारे।
एक बात जार्ज के बारे में और। समाजवादी हो और आतिषी न हो ? यह तो उनकी फितरत है। जार्ज के रक्षामंत्री के आवास (तीन कृष्ण मेनन मर्जा) में बर्मा के विद्रोहियों का दफ्तर खोल दिया। ये लोग फौजी तानाषाहों के विरूद्ध मोर्चा खोले थे। तिब्बत में दलाई लामा की घर वापसी का समर्थन और उनके अप्रवासियों को धन-मन से जार्ज मदद करते रहे। अण्डमान के समीप भारतीय नौसेना ने शस्त्रों से लदे जहाज पकडे़ जो अराकान पर्वत के मुस्लिम विद्रोहियों के लिये लाये जा रहे थे। जार्ज ने जलसेना कमाण्डर को आदेष दिया कि ये जहाज रोके न जायं। श्रीलंका के तमिल विद्रोहियों ने अपने दिवंगत नेता वी. प्रभाकरण के बाद जार्ज को अपना सबसे निकट का हमदर्द माना था। सच्चा समाजवादी दुनिया के हर कोने में हो रहे प्रत्येक विप्लव, विद्रोह, क्रान्ति, उथलपुथल, संघर्ष और गदर का समर्थक होता है। क्युंकी उससे व्यवस्था बदलती है, सुधरती है। जार्ज सदा बदलाव के पक्षधर रहे। इसलिए आज भी आम जन के वे मनपसन्द राजनेता है।
K. Vikram Rao
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