(यह लेख मैंने 14 नवम्बर 2016 को भोपाल जेल में लिखा था, जिसे सुभाष मलगी जी को जार्ज फर्नांडीज जी के जन्मदिवस पर आयोजित कार्यक्रम के अवसर पर प्रकाशित होने वाली स्मारिका के लिए भेज रहा हूँ।)
(डॉ सुनीलम, पूर्व विधायक, कार्यकारी अध्यक्ष किसान संघर्ष समिति, राष्ट्रीय संयोजक, समाजवादी समागम, नशा मुक्त भारत आंदोलन, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय)
शीर्षक देखकर चोंकिये मत, जॉर्ज सा को जीतेजी भुला दिया गया है। 5 दशकों तक देश की राजनीति को प्रभावित करने वाले एवं समाजवादी आन्दोलन की धुरी रहे नेता को भुला दिया जाना अखरता है; क्योंकि जिन ताकतों से वे आजीवन संघर्ष करते रहे वे उन्हें कभी परस्त नहीं कर सकीं। उन्होंने हर षड़यंत्र का मुहतोड़ जवाब दिया, जिसे दुश्मन नहीं मार पाया, उसे दोस्तों ने जीतेजी भुला। जिसे विडम्बना के अलावा और क्या कहा जा सकता है? बहुत सारे समाजवादी साथी कह सकते है कि अपनी करनी से ही वे अपनों से कटते चले गए, अलग-थलग होते चले गए। सबसे बड़ी त्रासदी जिस ट्रेड यूनियन को उन्होंने खड़ा किया था, उससे उन्हें अलग कर दिया जाना था, लेकिन बात वहां भी रुकी नहीं। उन्होंने जिस समता पार्टी को बनाया तथा बाद में जनता दल यु के तौर पर चलाया, उसने भी उन्हें याद करने की आवश्यकता नहीं समझी। इन पहलुओं पर बहुत कुछ लिखा जा सकता है। उम्मीद है लिखा भी जायेगा। जॉर्ज सा के साथ जो कुछ हुआ है वह समाज वैज्ञानिकों के लिए शोध का विषय तो है ही, समाजवादियों को भी इस पर जरुर विचार करना चाहिए। मुझे विश्वास है कि 3 जून को जॉर्ज सा के 88 वें जन्मदिवस के अवसर पर जब मुंबई में समाजवादी जुटेंगे, तब वे इसके बारे में अवश्य चर्चा करेंगे। मेरे लेख का यह विषय नहीं है। मैंने जॉर्ज सा को जैसे देखा उसके बारे में ही लिखा है।
देश के वरिष्ठ समाजवादी नेता जार्ज फर्नांडीज जी से मेरी पहली मुलाकात बृजेन्द्र तिवारी जी (मुन्ना भाई) साहेब के यहाँ हुई थी। तब मैं ग्वालियर साईंस कॉलेज में पढ़ता था। राकेश भाई के साथ मुन्ना भाई के पिताजी – प्रखर समाजवादी नेता विष्णुदत्त तिवारीजी से जुड़ गया था। युवा जनता से सक्रिय हो चुका था। तब जार्ज सा का ग्वालियर आगमन हुआ। उनसे मुलाकात की। जार्ज सा की सादगी और विचारों के पैनेपन ने प्रभावित किया। स्टेशन पर छोड़ने गया, तब पहली बार बात हुई। तब तक मैं समाजवादियों के प्रभाव में आकर कांग्रेस और नेहरू परिवार के खिलाफ हो चुका था। तब इसका मुख्य कारण मम्मी का इमरजेंसी के खिलाफ रहना और कविताएं लिखना था। इंदिरा गांधी की तानाशाही को लेकर मन में गुस्सा था। देश के स्तर पर कैसे इदिरा गांधी को राजनैतिक पटल से हटाया जाए, यही विचार मन में था। प्रस्ताव पर जार्ज फर्नांडीज जी से बात की। उन्होंने प्रेम से समझाया, व्यक्ति केन्द्रित होने से बात बनने वाली नहीं है, किसी एक व्यक्ति के हट जाने से व्यवस्था नहीं बदलेगी। पूरी व्यवस्था से लड़ना पडेगा। उसे बदलना पड़ेगा। मेरे लिए जार्ज सा. का यह पहला सबक था।
उसके बाद जब भी जनता पार्टी के कार्यक्रमों में ग्वालियर के बाहर जाता था, जार्ज सा. को सुनने-जानने का मौका मिलता था। उन्हीं दिनों जब जनता पार्टी की सरकार दिल्ली में चल रही थी, म.प्र. में संघी मुख्यमंत्री बन चुके थे। समाजवादियो के दोहरी सदस्यता के सवाल को उठाने के कारण आर. एस. एस और उनके मुख्यमंत्री की खिलाफत शुरू हो चुकी थी। मै साईंस कॉलेज की राजनीति में सक्रिय हो गया था। उन दिनों मुन्ना भाई, गजराज सिंह, राकेश शर्मा का एक ग्रुप जीवाजी विश्वविद्यालय में सक्रिय था। छात्रों में बड़ी धाक थी, सब तरफ एक ही बात सुनने को मिलती थी कि उनका ग्रुप 52 कॉलेजों में सबसे ज्यादा ताकतवर है। आज भी ग्वालियर चंबल संभाग में जो भी कांग्रेस-भाजपा के बड़े नेता हैं, वे सभी मुन्ना, गजराज भाई के शिष्य के तौर पर उन दिनों छात्र राजनीति में सक्रिय थे, मैं उनसे जुड चुका था। इस कारण सांईस कॉलेज की राजनीति के ग्रुप के सदस्य होने के नाते मेरी पहचान बन गयी थी। राकेश शर्माजी ने छात्र संघ के पदाधिकारीयों का राष्ट्रीय सम्मेलन किया, उसमें फिर जार्ज फर्नांडीज से मुलाकात हुई। उसी समय मुख्यमंत्री वीरेन्द्र सकलेचाजी के हाईकोर्ट के कार्यक्रम में पानी की समस्या को लेकर हमने अपनी ही जनता पार्टी – अपनी ही सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया। गिरफ्तारी हुई। बाद में हुजरात कोतावाली ले जाकर नेताओं के हस्तक्षेप के चलते छोड़ दिया गया। शाम को बाडे़ पर सभी साथी छात्रों पर लाठी चार्ज हुआ था। हमने कॉलेज जाकर आम सभा में विरोध करने का निर्णय लिया। शाम को आमसभा शुरू हुई, तब हमने लाईट आफ कर दीं नारेबाजी की। आर एस एस के नेताओं, मंत्रियों का जबरदस्त विरोध किया। लाठी चार्ज हुआ। काफी चोटें लगीं। गिरफ्तारी हुई।
ग्वालियर से एम. एस. सी करके जब दिल्ली गया, तब लगभग रोज जार्ज सा के यहाँ जाने लगा। प्रो.विनोद प्रसाद सिंह जी के साथ प्रतिपक्ष साप्ताहिक और युवा जनता के कार्यक्रमों के चलते जार्ज सा से मुलाकात होती रहती थी। मैने कभी भी जार्ज सा को आराम करते नहीं देखा। हर समय काम ही करते रहते थे। रोजाना 100 से अधिक चिट्ठियां लिखते थे। हालांकि यह काम मुख्य तौर पर नरेन्द्र गुरू जी का था। न्यूटन जी अंग्रेजी की चिट्ठियां तैयार करते थे। घर में एक मिर्जा खानसामा थे। पत्नी लैला जी साथ ही रहती थीं। सनी बेटा छोटा था।
अचानक एक दिन इंदिरा गाँधी की हत्या की खबर मिली , मै जार्ज सा के यहां घर में ही था। पिताजी के पास जबलपुर जाने का कार्यक्रम था। महाकौशल एक्सप्रेस गाड़ी जब स्टेशन से निकली तो उसमें काफी सिक्ख सवार थे। लेकिन मैने देखा हर स्टेशन पर कांग्रेसी आते, सिक्खों को ट्रेन से बाल खींचकर उतारते, मारते-पीटते। गाड़ी चल देती। रघुभाई भी ट्रेन में दिखलाई दिए। मैने ट्रेन के सभी सिक्खों को अपनी बोगी में इकटठा किया। बोगी वाले लोग मना करते रहे, सभी का कहना था कि हमें सिक्खों के चक्कर में मार दिया जाएगा। घीरे-धीरे सभी इधर-उधर हो गए। मुरैना में कुछ ऐसी स्थिति बनी कि सिक्खों को सीटों के नीचे छुपाना पड़ा। मैने सभी से कहा कि वे अन्दर घुसकर सीट नीचे से पकड लें कोई कितना भी खीचें हाथ नहीं छोड़ें। निकलें नहीं। सिक्खों को मारना, पीटना, जलाना सब आंखों के सामने चलता रहा। अखिरकार गाड़ी अगले दिन जबलपुर पहुँच गई। मैने स्टेशन में पापा को फोन किया,जो केंद्रीय विद्यालय,रांझी में प्राचार्य थे मिलिट्ररी के ट्रक का इंतजाम कर वे स्कूल चले गए। मैं सभी सिक्खों को लेकर आरपीएफ रेलवे पुलिस थाना में गया। वहाँ जाते ही एस. पी. मुझे गाली देने लगा। उसने कहा कि तुम्हारे चक्कर में सिक्ख विरोधी थाना जला देगें। मैंने उसको जार्ज सा का परिचय दिया। जार्ज सा से फोन पर बात कराई, तभी लोगों ने थाना घेर लिया। जैसे तैसे पापा के द्वारा भिजवाया गया ट्रक आया। ट्रक से सभी को ले जाकर गुरूद्वारों में छोड़ा गया। इस पूरे घटनाक्रम के दौरान सिक्खों से एक विशेष आत्मीयता और लगाव बना, जो आज तक कायम है।
दिल्ली लौटा। भोगल, त्रिनगर में सिक्खों का कत्लेआम जारी था। जनता पार्टी के अध्यक्ष चन्द्रशेखर जी और जार्ज साहेब जी भोगल गए थे। उन्हें मारने की कोशिश हुई। लेकिन हम सबने मामला संभाला। त्रिनगर में मैंने सैकड़ों लोगों को चारपाई में सिक्खों को बांधकर जलाते हुए देखा। जार्ज सा ने हर संभव तरीके से नरसंहार का विरोध किया । उनकी बहादुरी एवं प्रतिबद्धता ने मुझे उनके और अधिक नजदीक ला दिया। बाद में मैं कई बार जार्ज सा. के साथ पंजाब दौरे पर गया। मैने देखा कि किस तरह सिख कौम जार्ज सा. को अपना नेता- हितैषी और परिवार का सदस्य मानती है।
सिक्खों से जुड़ी दो चार बातें और, एक बार अकाली नेता प्रकाश सिंह बादल ने भारत का संविधान जलाने की घोषणा की। जार्ज सा. ने बहुत मना किया। वे माने नहीं। स्थिति कुछ ऐसी थी कि अकाली दल को खत्म करने के लिए इदिरा गांधी ने जैल सिंह के माध्यम से भिंडरावाले को खड़ा कर दिया था। सिख राजनीति में चरम पंथी हावी होते जा रहे थे। प्रकाशसिंह बादल अकाली दल में कमजोर होने लगे थे। इसी दबाव में अपनी हैसियत बनाए रखने और खुद को भारत की केन्द्र सरकार का विरोधी साबित करने के लिए बादल जी ने यह काम किया। कार्यक्रम खत्म होने के बाद वे जार्ज से मिलने हौजखास वाले घर में आए। आते ही गले मिलकर रोने लगे। कम से कम आधा घण्टे तक रोते रहे। कहा कि मै कभी भी यह नहीं करना चाहता था जार्ज। में देशभक्त हूँ। मैने देखा जॉर्ज सा की आँखों में भी आँसू छलक आये थे।
एक बार में आपरेशन गोल्ड टेम्प्ल के पहले प्रतिपक्ष साप्ताहिक के लिए भिंडरावालेजी का इंटरव्यू करने गया। विस्तार से बात हुई? वह इंटरव्यू भी प्रतिपक्ष में छपा। उस अंक को सरकार ने जब्त भी किया था।
युवा जनता के प्रतिनिधि के तौर पर मेरा विदेश का दौरा शुरू हो चुका था। मुझे लंदन जाना था। ठहरने की कोई जगह नहीं थी, जार्ज सा ने एक सिख सज्जन को साऊथ हाल के लिए चिट्ठी दी, वहां ठहरा, फिर मैने पंजाब पर विशेष स्टोरी तैयार करने के लिए जगजीत सिंह चौहान ( खालिस्तान के स्वयंभू राष्ट्रपति) के साथ मुलाकात की। वे सादगी के साथ रहते थे। उन्होंने स्वयं हाथ से खाना बनाया, खिचड़ी बनाई, खुद भी खाई, हमे भी खिलाई। वे लगातार जॉर्ज सा की तारीफ करते रहे।
जार्ज सा. के साथ मैंने तमाम कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। एक बार 26 तुगलक रोड वाले घर पर रात को जार्ज सा. ने मुझसे कहा कि कल एशियाड शुरू होने जा रहा है, हमें कल सुबह प्रदर्शन करना है, रात के 10 बज चुके थे। मैंने मना किया, कहा कि एक दिन का समय दीजिए। युवा जनता और पार्टी के साथी इकट्टा हो सकेंगे ,वे नहीं माने , बोले पुलिस कमिशनर को खबर कर कर देना। मैने फिर भी मना किया तो कहा कि मैं 10 बजे प्रदर्शन के लिए पहुँच जाऊंगां, देखना जैसा ठीक लगे। मुझे जार्ज सा. का तरीका ठीक नहीं लगा। मैं उन दिनों दिल्ली विश्वविद्यालय के जुबली हाल हास्टल में रहता था। सुबह स्कूटर से दो लड़कों के साथ जब पहुँचा तब जार्ज अपनी फियेट से स्वयं चलकर जंतर मंतर जनता दल कार्यालय में पहुँच चुके थे। कार्यालय खुला नहीं था। कुछ देर रुके फिर कार्यालय के अंदर गए। 10 मिनट के बाद कहा कि चलो समय हो गया है, प्रदर्शन के लिए चलते हैं, मैंने कहा कि जार्ज सा. 4-5 लोग भी नहीं हैं। ठहर जाइये साथी आएगें, तब चलेगें। बोले ,अच्छा तुम इंतज़ार करो मैं चलता हुँ ,कहकर उठ गए। मैं भी पीछे चल दिया। सीढ़ियाँ उतर कर देखा तो कम से कम 500 पुलिस फोर्स के सिपाही अधिकारी बेंत और लोहे की जाली के साथ मौजूद थे। घोड़े वाली पुलिस भी थी ।जार्ज ने नारा लगाना शुरू किया। हमने साथ दिया। आगे बढ़े ,गेट के बाहर जाकर डी.टी.सी की एक बस पर चढ़ गए। उस समय जार्ज फर्नांडीज बड़ा नाम था। लोग इकट्ठे होने लगे। लम्बा 45 मिनट का भाषण दिया, फिर उतरकर पार्लियामेंट की तरफ बढ़े। पार्लियामेंट थाने के सामने बेरिकेट पर हम 4 लोगों की गिरफ्तारी हो गयी। अगले दिन के अखबारों में कॉमन वेल्थ के राष्ट्र अध्यक्षों के उद्घाटन कार्यक्रम की फोटो और जार्ज सा. की पुलिस से घिरे हुए बस पर खड़े हुए भाषण देते हुए फोटो फ्रंट पेज पर छपी, तब से मैंने तय कर लिया कि जब भी विरोध करना जरुरी हो, करो, संख्या के बारे में कभी भी विचार मत करो। कार्यक्रम होना अपने आप में ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। संख्या का ज्यादा महत्व नहीं है। इसी सोच पर मै आजीवन चलता रहा, जिसके चलते अब तक मुझ पर 137 मुकदमें दर्ज हो चुके हैं।
जॉर्ज साहेब निजी संबंधों को भी महत्व देते है। जार्ज साहेब ने शादी के वक्त जयाजी के साथ जाकर साड़ी लाए तथा मेरा हवाई जहाज से लेह-लद्दाख का टिकट कराया। वहां ठहरने का इंतेजाम भी कराया। शादी में भी पूरे समय रहे।
मै जब से जार्ज साहेब से जुड़ा उनके सभी चुनाव क्षेत्रों में गया। मुजफ्फरपुर, भागलपुर,बांका के चुनाव मे रहा। बिहार के चुनाव उस समय बूथ की लूट पर आधारित होते थे। जार्ज सा. का चुनाव, बम्बई की टीम लड़ा करती थी। सभी कुछ तय था। जार्ज सा दौरा करते थे, बाकी सब काम दूसरे साथी सम्भालते थे। जार्ज सा ने कभी साधनों के अभाव के साथ चुनाव नहीं लड़ा। चुनाव के समय कभी कोई कमी नहीं रहती थी। हर तरीके से सक्षम होकर जार्ज सा के चुनाव लड़ा जाता था उनके राजनीतिक एवं गैर राजनीतिक साथी उनकी हर तरह से मदद करते थे। मुझे अच्छे से याद है एक बार की घटना, मुजफ्फरपुर के गायघाट विधानसभा क्षेत्र में चुनाव (मतदान के दिन) मैने दूसरी पार्टियों को बूथ छापते हुए देखा, विरोध करने पहुंचा तो बिहार पुलिस ने हवालात में पहुंचा दिया, वोटिंग खत्म होने के बाद छोड़ा गया। झाझा में एक बार त्रिपुरी बाबू (स्पीकर बिहार विधान सभा) ने बिहार के बाहर के साथियों को जिन बूथों पर कब्जा होता था, ले जाकर छोड दिया। लौटते समय पुलिस ने घेर लिया। तलाशी ली कुछ भी नहीं निकला। रात को हम जब गांव में थे पुलिस आई। हम सबको गिरफ्तार कर लिया। झाझा के हवालात में ले जाकर बन्द कर दिया। अगले दिन जार्ज सा ने छुुडवाया, फिर बूथ पर पहुँचाया। जब वोटिंग शुरू होने लगी, बूथ छापने के लिए गुंडे आ गए। मैंने विरोध किया। पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया । हवालात में ले जाते हुए गाडी बीच में रोक दी। कहा कि जाओ मैं समझ गया कि पुलिस एनकाउंटर करना चाहती है, मुझे धक्का दिया परंतु मैं उतरा नहीं, बाद में ले जाकर हवालात में बन्द कर दिया। वोटिंग के बाद छोड दियां जार्ज सा चुनाव हार गए।
हमने दिल्ली में मुख्यंमंत्री बिन्देश्वरी दुबे का विरोध करने का फैसला किया ।वह प्रगति मैदान में बिहार के पवेलियन का उद्घाटन करने आए थे। मैं साथियों के साथ पत्रकार के तौर पर गया और टेपरिकार्ड लेकर पहुँच गया। साथियों ने अण्डे ले लिए, मुख्यमंत्री जब उद्घाटन के लिए खडे हुए तभी अण्डों की बरसात शुरू हो गई। जमकर लाठी चार्ज हुआ लेकिन मुझे पत्रकार समझकर छोड़ दिया गया। ऐसा ही हमने एक बार पेप्सी कोला के वाईस प्रेसीडेन्ट के आगमन पर पाँच सितारा होटल में घुसकर विरोध किया। इसके पीछे जॉर्ज साहेब की प्रेरणा थी।
जार्ज सा के साथ मैं तमाम दौरों में भी गया, वहा मैंने देखा कि जार्ज सा अम्बेसडर गाड़ी में दौरा करते थे। पीछे वाली सीट पर लेटे रहते थे। सभा स्थल पर उतरकर भाषण देकर फिर लेट जाते थे। उन्हें फल पसंद थे। संतरा, लीची अच्छी मात्रा में खाया करते थे। अपने कपडे बिना प्रेस के पहनना, मैंने उनसे सीखा। पहले जेल से बाहर में प्रेस कराकर पहनता था लेकिन जेल में जब तक रहा जार्ज सा के फार्मूले का इस्तेमाल करके कपडे खुद धोकर रात को सिर के नीचे रखकर अगले दिन कपडे पहने। कई बार मुझे लगता है कि अपने कपडे धोने के चक्कर में यदि जार्ज सा अपने बाथरूम में नहीं गिरे होते तो शायद आज जो उनकी स्थिति है वह नहीं होती।
जार्ज सा के साथ मुझे धर्मशाला जाने का पूज्यनीय दलाई लामाजी से मिलने का अवसर भी प्राप्त हुआ। जार्ज सा ने जीवन भर वर्मा के लोकतंत्र की बहाली तथा तिब्बत की आजादी को लेकर काम किया। यही कारण है कि भारत में रहने वाला एक-एक तिब्बती उन्हें अपना नेता और परिवार का सदस्य मानता है। अब जबकि जार्ज सा एलजाइमर्स के कारण सार्वजनिक जीवन से अलग हो चुके हैं, अभी भी उनके जन्म दिन पर सबसे ज्यादा बधाई देने तिब्बत और वर्मा के साथी ही पहुँचते हैं।
जार्ज सा के साथ मैं एक बार नेपाल गया था। वहाँ यूसी (इंटरनेशनल यूनियन सोशलिस्ट यूथ, 120 देशो के युवा समर्वादियों का संगठन) का कांफ्रेंस था। जार्ज का नेपाली कांग्रेस की त्रिमुर्ति कृष्णा प्रसाद भटराई जी, गिरजा प्रसाद कोइरालाजी और गणेश मान सिंहजी के साथ घनिष्ट संबंध था। नेपाली कांग्रेस के कार्यकर्ता और नेता उन्हें अपना हिस्सा समझते थे। जार्ज सा के साथ मधु दंडवते और सुरेन्द्र मोहन जी भी थे। गणेश प्रसाद जी, भट्टराई जी, कोइराला जी तीनों भी साथ मौजूद थे। तब मैने यह बात शुरू की कि हम समाजवादियों ने भारत में जो गलती लगातार बंटने की, अलग अलग होने की, की है, वह गलती नेपाल के समाजवादी नेताओं को नहीं करनी चाहिए। इस मुद्दे पर कभी लम्बी बात हुई थी लेकिन बाद में नेपाली कांग्रेस में हुए बिखराव से यह तथ्य सामने आया कि किसी ने जार्ज सा की बात पर ध्यान नहीं दिया था। उसी दौरे पर हम तिब्बत बार्डर पर गए थे। सीमा पार कर तिब्बत सीमा के भीतर चले गए। बाद में खबर फैल गई। नेपाल के साथियों को काफी विरोध झेलना पड़ा।
इंटरनेशन यूनियन फार सोशलिस्ट यूथ (आई.यू.एस.वाई.) के उपाध्यक्ष के तौर पर मैं जहाँ भी जाता था, हर देश की समाजवादी पार्टी के नेता जार्ज सा के परिचित निकलते। मुझे लगता है कि आज़ादी के बाद इंदिरा गांधी को दुनिया के राजनैतिक दलों के नेता भारतीय नेता के तौर पर सबसे ज्यादा जानते हैं, उसके बाद जार्ज सा को ही दुनिया भर में जाना जाता है। सोशलिस्ट इंटरनेशनल की सदस्य पार्टियाँ के बराबर उनकी पूछतांछ होती रहती थी। लेकिन जार्ज सा के समता पार्टी बनाकर एन.डी.ए. में शामिल होने (संयोजक) बनने के बाद स्थिति बदल गई। एक समय ऐसा आया जब मैं पार्टी का यूसी का उपाध्यक्ष था। मैंने भारत में सोशलिस्ट इंटरनेशनल की काउंसिल की बैठक आयोजित करने का फैसला कराया था। दुनिया के सभी समाजवादी नेता आए लेकिन जार्ज सा को नहीं बुलाया गया। जबकि सभी ने आकर जार्ज सा को पूछा। मुझे याद है जार्ज सा को लेकर उस समय जनतादल के भीतर विवाद हो गया था। हुआ यह कि हमने समाजवादी आन्दोलन पर एक प्रदर्शनी तैयार की। उसमें से जार्ज सा का इमर्जेन्सी वाला चित्र (हथकडी लगी) शामिल करना चाहता था। पार्टी ने उस चित्र को हटाने के लिए कहा। मैं अड गया। मैंने कहा यदि प्रदर्शनी लगेगी तो जार्ज सा के चित्र की यही फोटो के साथ लगेगी। इसी तरह किताब का भी हुआ। हमने इवोल्यूशन ओफ सोशलिस्ट पालिसी इन इंडिया (समाजवादी पार्टीयो के इतिहास के महत्वपूर्ण दास्तावेजों का संकलन) तैयार किया, उसमें जार्ज सा के उल्लेख को लेकर भी विवाद हुआ था ,लेकिन फिर भी हमने किताब छापी। कौंसिल की बैठक तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल तथा जनता दल के नेताओं की भागीदारी के साथ सफलतापूर्वक संपन्न हुई।
मै जार्ज सा के साथ स्पेन भी गया था। युवा सम्मेलन (यूथ फेस्टीवल) में मैने जार्ज सा को फार्म में देखा। जीन्स टी शर्ट पहने हुए। जॉर्ज सा चिर युवा बने रहे। एक बार मुझे याद है जार्ज सा का फोटो फाइल अभिनेत्री जीनत अमान के साथ ब्लिटज में छपा। हमने बहुत झिझक और लिहाज के साथ जार्ज सा को बताया। उन्होने कहा कि तुम जवान लोगों को खुशी होनी चाहिए कि मेरी फोटो जीनत के साथ छपी है। तुम जवानों के साथ तो में कोई महिला साथी देखता नहीं हूँ।
एक बार का वाक्या मुझे याद है। शरद यादवजी और जार्ज सा के बीच पार्लियामेन्ट्री पार्टी के नेता का चुनाव होना था, मधु दंडवते जी रिटर्निंग आफीसर थे, मै भी संसद के अंदर जनता दल संसदीय दल के कार्यालय में मौजूद था। सभी ने जार्ज साहेब को चुनाव न लडने का सुझाव दिया था। शरद भाई को स्वयं ही चुनाव नहीं लडना चाहिए, यह भी सबकी राय थी लेकिन पार्टी में गुटबाजी चरम पर थी। जार्ज साहेब आर्थिक नीतिओं को लेकर वैश्विकरण के खिलाफ पार्टी को लेकर आगे चलना चाहते थे परंतु दूसरी तरफ मंडल कमीशन की सिफारिशों पर हुए झंझावत के बाद शरद यादवजी, लालू यादवजी, राम विलास पासवानजी, नीतिश कुमारजी सामाजिक न्याय के मुद्दे पर पार्टी चलाना चाहते थे। वोटिंग हुई। जब वोट गिने जा रहे थे। जार्ज सा संसद में पार्टी कार्यालय में अंदर के कमरे में चुपचाप गुमसुम अकेले बैठे थे। नतीजा आया। बहुमत शरद भाई को मिला। रामविलास पासवान जी बगल के कमरे में दुखी होकर चले गए। जार्ज सा को बहुत कम वोट मिले। इसके बाद लालू आए उन्होने मेरे मुंह में लड्डू डाला, जो भी आता शरद भाई जिंदाबाद कह कर लड्डू खिलाता। कोई भी जाकर जार्ज सा से नहीं मिला। उसी क्षण मैं समझ गया था कि अब जार्ज साहेब का पार्टी में संभव नहीं होगा इतना बेइज्जत होकर वे पार्टी में नहीं रह सकंगे। फिर यही हुआ, उन्होंने समता पार्टी बना ली।
मुझे याद है, मैं घर पर था। कृष्णा मेनन मार्ग पर बैठा था, नाश्ते की टेबल पर जार्ज ने मक्खन लगाने के लिए ब्रेड स्लाइड ली। इंडियन एक्सप्रेस पढ़ रहे थे। सामने से मैंने देखा उसमें खबर छपी थी, जार्ज ने 4 सांसदों के साथ समता पार्टी का गठन किया, मैंने पूछा आपने पार्टी कब बना ली? उन्होंने कहा हाँ पार्टी बना ली है। मुझे आश्चर्य हुआ कि मै घर पर ही हुँ। रोज घर में ज्यादातर समय रहता हुँ, मुझे मालूम नहीं। मैने तमाम समाजवादी नेताओं का नाम लेकर पूछा कि आपने क्या इन सभी नेताओं से बात की ? उन्होंने साफ इंकार किया।मैंने पूछा क्यों? उन्होने कहा कि बात करता तो कभी पार्टी बन ही नहीं सकती थी। असल बात यह थी कि जब जनता पार्टी बनी थी, तब जार्ज सा ने सोशलिस्ट पार्टी के जनता पार्टी में विलय का विरोध किया था लेकिन जनभावना के चलते (जे.पी.) के हुक्म तथा मधु लिमये एवं अन्य लोहियावादियों द्वारा विलय का पक्ष लिए जाने के कारण फैसले को स्वीकार कर लिया था लेकिन मन ही मन वे मानते थे कि यह फैसला गलत है। वे जनता पार्टी टूटने के बाद फिर से सोशलिस्ट पार्टी गठित करना चाहते थे, तब सम्भव नहीं हुआ। विलय के समय की गई अपनी गलती सुधरने की दृष्टि से उन्होंने समता पार्टी बनाई। एक कारण यह भी था कि जनता दल में जो स्थिति बनी थी उसमें सम्मानजनक तरीके से रहना भी सम्भव नहीं रह गया था।
मैने जार्ज सा को प्रतिपक्ष, द अदर साइड के लिए लगातार परेशान देखा। हर राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में वे सभी से प्रतिपक्ष के सदस्य बनाने, पैसा जुटाने के लिए कहते थे लेकिन आम तौर पर कोई भी साथी इसमें रूचि नहीं लेते थे जिससे वे बहुत दुखी हो जाते थे। द अदर साइड तो वे खुद ही निकालते थे, सभी संपादकीय स्वयं खुद ही लिखते थे।
जार्ज सा की पढने लिखने की बहुत आदत थी, हर समय लेटेस्ट जानकारी के साथ लिखते थे और भाषण देते थे। भाषण बहुत ही प्रभावशाली ढंग से देते थे। मैंने भाषण भी उनसे सीखा। जानबूझकर नहीं लेकिन मुझे जार्ज सा का भाषण बहुत भाता था। जब मै भाषण देने लगा तब वही आदत पड़ गई।
जार्ज सा से मेरा लगाव बहुत अधिक था लेकिन जब उन्होंने समता पार्टी बनाते समय किसी को नहीं पूछा तब मुझे लगा कि यह अलोकतांत्रिक तरीका है। मै समता पार्टी में शामिल नहीं हुआ। उन्होंने मुझे शामिल होने को नहीं कहा। मैं इसे भी उनका लोकतंत्र में दृढ विश्वास का एक उदहारण मानता हूँ, क्योंकि मुझे लगता है कि यदि एक बार भी वे मुझसे कह देते तो शायद समता पार्टी में उनके साथ ही रहता।
उसी समय एक और वाक्या हुआ। लोहिया की नगरी अकबरपुर में समाजवादी मेला आयोजित किया गया। हम सब वहाँ गए। लैला जी, जयाजी, दोनों वहा थे। मुझे लगा कि मामला बिगड सकता है। मैं जार्ज सा की छवि को लेकर बहुत चिन्तित था लैला फॉर्म में थीं। शो-डाउन करने का तय करके आयी थीं। मैं समझ गया, मैंने जयाजी को रेस्ट हाउस में रुकने, कार्यक्रम में न आने की सलाह दी। सम्मेलन बिना किसी झंझट के खत्म हो गया। दिल्ली जाकर मैंने जार्ज सा से इस सम्बंध में बात करनी चाहीं, उन्होंने साफ साफ तैार पर कहा कि वे किसी के निजी जीवन मे हस्तक्षेप नहीं करते, न ही यह चाहते कि कोई उनके निजी जीवन में हस्तक्षेप करे। उन्होंने कहा कि वे सक्षम हैं, उन्हें मालुम है कब कहाँ क्या करना है। यानी यह था मैंने जो कुछ किया वह उन्हें पसन्द नहीं आया था तथा वे इस संबंध में कोई बात सुनना नहीं चाहते थे। तभी से मैंने 3 ,कृष्णा मैनन मार्ग आना जाना छोड़ दिया।
कुछ समय बाद मुलताई गोलीकण्ड हो गया। मैं 4 माह जेल में रहा। मुझे नहीं मालूम कि जार्ज सा ने गोलीचालन को लेकर क्या किया था? (जेल से बाहर आने के बाद दिग्विजय सिंह के करीबी एक पत्रकार ने बताया कि मुझे एनकाउंटर के लिए ले जाने के बाद इसलिए छोड़ दिया गया था क्यों कि जॉर्ज साहेब ने गोली चालन के बाद दिग्विजय सिंह को किसी भी हालत में मेरी जान बक्स देने के लिए व्यक्तिगत तौर पर अनुरोध किया था )। बाहर आने के बाद मैं लगभग मुलताई में केन्द्रित हो गया था। महापंचायत के प्रस्ताव पर स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ा । विधायक बन गया। जार्ज सा से मिलना जुलना नहीं हुआ। हां ,बीच में कभी जया जी से बात हुई तब उन्होंने कहा कि जॉर्ज सा तुम्हे याद करते है, मुझे कभी मिलना चाहिए लेकिन में उनके भा ज पा के साथ गठबंधन के खिलाफ था, इसलिए कभी मिला नहीं।
फिर अचानक एक दिन जब मैं अमरीका के साथ हुए न्यूक्लियर डील के बाद अविश्वास प्रस्ताव पर संसद की बहस सुनने पहली बार गेलरी में बैठा। उस दिन मैंने देखा कि जार्ज सा को दो सुरक्षा कर्मी अंदर लेकर आ रहे हैं। वे चुपचाप बैठे सुन रहे हैं, फिर वापस निकल गए। उनके स्वास्थय की खराब हालत देखकर मैं विचलित हो गया, मैंने तुरन्त घर जाकर मिलने का मन बनाया , मिला, काफी लम्बी बात की। तब तक जार्ज सा की स्थिति बिगड चुकी थी लेकिन फिर भी वे थोडी बात करते थे। मैंने पूछा अब आपका राज्यसभा का कार्यकाल खत्म होने वाला है। आप क्या करेंगें ? उन्होंने कहा कि मालूम नहीं। फिर बतलाया कि प्रधानमंत्री को मकान का एक्सटेन्शन देने के लिए पत्र लिखा है। मैंने कहा कि मैं जयपाल जी (तत्कालीन आवास मंत्री) से बात करता हूँ। लेकिन यदि एक्सटेन्शन नहीं मिला, तो कहां रहने जाएंगे? उन्होंनं कहा जया की बेटी ने ऑफर किया है। वह नीचे रहती है, वहां मैं रहूँगा। और वे लोग ऊपर रहेगें। मैं फिर अगले दिन गया, मैने पूछा मैं आपके साथ काम करना चाहता हूं, फिलहाल आपके साथ कौन है जिससे विस्तार में बात करूं। आपके काम को आगे बढ़ाने के लिए। उन्होंने कोई जबाब नहीं दिया । मैंने फिर से पूछा उन्होंने कहा कोई नहीं। मेरे दोबारा पूछने पर उन्होंने अपने खास अंदाज में कहा सुनील केवल जया है। मैंने कहा कि मैं आपके साथ हूं। मेरे लायक जो कुछ भी हो, खबर करवाईएगा ।
मेरा मध्यप्रदेश में चुनाव चल रहा था उसमें व्यस्त हो गया, नतीजा निकला, विधान सभा चुनाव हार गया। मैंने डॉ लोहिया की जन्म शताब्दी वर्ष के अवसर पर राष्ट्र सेवा दल और यूसुफ मेहरअली युवा बिरादरी के साथ मिलकर देश भर की सड़क मार्ग से समता विचार यात्रा का कार्यक्रम बनाया। उसके उद्घाटन के लिए जार्ज सा को बुलाया। जया जी जार्ज सा को लेकर कार्यक्रम में आईं। शायद वही जार्ज सा का अंतिम सार्वजनिक कार्यक्रम था उसके बाद फिर कभी भी किसी सार्वजनिक मंच पर नहीं गए। उनके पुराने साथी आकर मिले सभी को पहचान रहे थे, पर बोलने की स्थिति में नहीं थे।
इस बीच लैला जी और सनी आकर जॉर्ज सा को कृष्णामैनन मार्ग से हरिद्वार के रामदेव बाबा के आश्रम में ले गए। मैं मुलायमसिंह जी के पास गया। मैंने बाबा से बात करायी। मुलायम सिंह जी ने कहा जॉर्ज साहेब मेरे नेता है, मैं चाहता हूँ कि आप उन्हें जल्दी वापस दिल्ली भिजवा दें। बाबा ने कहा कि आप चिंन्ता मत करों मैं उन्हें दौड़ाकर वापस भेजूंगा। मुझे डर था कि हरिद्वार की सर्दी में कहीं दम ही न तोड दें। कुछ समय बाद उनको लैला जी अपने पंचशील वाले घर में वापस ले आईं। किसी से भी मिलना बंद हो गया। मैंने कई बार प्रयास किया। एक बार मैं घर पहुँच गया। देखा कि अस्पताल से वापस लौटने के बाद गाडी से उतरने को तैयार नहीं हैं, अडे हुए हैं। मैं बिना मिले लौट आया । इसके बाद जब जार्ज सा का जन्म दिन आया, हमने सबको इक्ठ्ठा किया। कमल मोरारका, अजयसिंह, संतोष भाई, तिब्बत और वर्मा के साथी बड़ी संख्या में पहुँचे। लैला जी ने जार्ज सा को कुर्सी पर बिठाकर सबसे मिलवाया। उस दिन उन्होंने बात भी की। लैलाजी ने मुझसे कहा कि मैंने उनके खिलाफ लेख लिखकर, कैंपेन चलाकर गलत किया है। मैंने जवाब दिया कि मैंने सब कुछ इसलिए किया, क्योंकि मैंने गत वर्षों में तुगलक रोड के बाद अब तक कभी उन्हें जार्ज सा के आसपास देखा नहीं है। हर परिस्थिति में जयाजी साथ रहीं, उन्होने असहमति व्यक्त की। कहा यह तुम्हारा घर है कभी भी आना। फिर एक बार अस्पताल और घर में मिलने गया। तब तक उन्होंने किसी को भी पहचानना बंद कर दिया था। खुद उठने बैठने की स्थिति में भी नहीं थे, जिन्दा लाश की तरह हो गए थे। मै आज भी जाकर लगातार उनके दर्शन करता हूँ। लैलाजी हरसंभव तरीके से उनकी देखभाल कर रही हैं। प्रेम से बिठा कर मिलने वालों से बातचीत भी करती हैं।
मुझे लगता है कि उन्होने अपने शरीर पर कभी ध्यान नहीं दिया। जिस दिन बाथरूम में गिरे थे उसी समय डॉ को यदि दिखलाया होता या आपरेशन के बाद सावधानी बरती होती तो इस स्थिति से हो सकता है, बचा जा सकता था। मैने जार्ज सा के माध्यम से राजनीति का क्रूरतम पहलू देखा ,एक समय देश की राजनीति और राजनीतिज्ञों को उनके इर्द गिर्द देखा और बाद में उन्हें केवल और केवल पत्नी के भरोसे देख रहा हूँ। लैला जी एक तरह से तपस्या में लीन है। यह भारत मे लैला जी जैसी पत्नी ही कर सकती है शायद कोई और नहीं।
सबसे दुखद पहलू यह है कि जीवन भर जिस व्यक्ति ने ईमानदारी से काम किया, जिनके बारे में मैं विश्वास पूर्वक कह सकता हूं कि वह बेईमान व्यक्ति नहीं था। मैंने उन्हें घर पर एक बार नहीं कई बार कितनी शक्कर में कितनी चाय बनेगी, यह हिसाब करते बडे मियां (खान सामा) के साथ देखा था। मुझे मालूम है उन्होंने कभी सम्पति नहीं बनाई। जब भी चुनाव आया अपने साथियों को यथा सम्भव मदद पहुँचाने का काम किया। ऐसे मेरे अजीज नेता को पूंजीवादी और भ्रष्टाचारियों द्वारा सम्पति जुटाने वाला नेता आरोपित किया गया, वह भी उन लोगों के द्वारा जो कभी जार्ज सा के सामने मुँह खोलने की औकात नहीं रखते थे। मैं यह दावे से कह सकता हूँ कि देश के बडे कद के नेताओं में से किसी ने भी नेहरू परिवार का इतना तगडा नीतिगत विरोध नहीं किया, जितना जार्ज फर्नाडीज ने किया ,व्यापक राष्ट्र हित में यह आवश्यक भी था। देश में मानव अधिकारों, जन आन्दोलनों को ताकत देने तथा समाजवादियों की देश की सबसे बडी यूनियन एच एम एस का नेतृत्व भी उन्होंने किया ,उन्हें रेल हड़ताल को लेकर आज भी जाना और माना जाता है। अलग होकर एच एम के पी चलायी। लेकिन बाद में अपने साथियों के द्वारा उन्हें अपनी यूनियन से अलग कर दिया जाना दुखद घटना थी। हिंद मजदूर किसान पंचायत के एक गुट का शरद राव जी के नेतृत्व में हिंद मजदूर सभा में विलय हो गया। आज हिंद मजदूर सभा 92 लाख सदस्यता वाली बड़ी यूनियन है जिसके महामंत्री हरभजन सिंह सिद्धू हैं। हिन्द मज़दूर किसान पंचायत भी चल रही है। ट्रेड यूनियन आंदोलन में व्यापक एकजुटता जरूरी है अन्यथा मज़दूर आंदोलन द्वारा गत 150 वर्षों में हासिल श्रम अधिकाँरों को नहीं बचाया जा सकेगा।
मेरी इच्छा है कि जार्ज सा की वैचारिक विरासत को आगे बढ़ाऊं लेकिन यह काम कोई संगठन ही कर सकता है। जनतादल यू की इममें रूचि नहीं है, इतना जरूर है कि जार्ज सा को आखिर में अप्रत्याशित तौर पर नितीश भाई ने एक बार फिर से राज्यसभा का सदस्य बनाया था ,18 मई को शरद यादव जी के नेतृत्व में लोकतांत्रिक जनता दल का गठन हो रहा है ,वे क्या करते हैं यह देखना होगा।
जार्ज सा का योगदान समाजवादी आन्दोलन में मैंने अपनी आँखों से देखा है। जे.पी., लोहिया को नहीं देखा लेकिन उनके बाद की पीढी को नजदीक से देखा और जाना है। कर्म, विचार, आचरण, हर तरह से समाजवादी आन्दोलन के बडे नेताओं राजनारायणजी, मधुलियये जी, मधु दण्डवते जी, कर्पूरी ठाकुर जी, सुरेन्द्र मोहन जी, जनेश्वर जी, बृजभूषण तिवारी जी एवं प्रोफेसर विनोद प्रसाद सिंह जी आदि समाजवादी नेताओं को जानने का मुझे व्यक्तिगत स्तर पर मौका मिला। जार्ज सा से संघर्ष सीखा, मधु लिमये जी से लिखना पढ़ना और इतिहास जाना, मधु दण्डवते जी से बिना तिकड़म के राजनीति में अपना स्थान बनाया जा सकता है यह समझा, सुरेंद्र मोहन जी से कार्यकर्ताओं से संवाद संपर्क एवं जीवंत रिश्ते का महत्व जाना ,जनेश्वर जी से लोहिया जी के संस्मरण सुने और विचारों को जाना, बृजभूषण से निर्विकार भाव से राजनीति करने की जरूरत को समझा, प्रो. विनोद प्रसाद सिंह जी ने सबसे परिचय कराया, हर स्तर पर मदद की, समाजवादी आंदोलन के बारे में लिखना पढ़ना सिखाया। पर संघर्ष मेरे जीवन की प्रेरणा और मूल आधार जॉर्ज साहेब के कारण ही बना।
जब भी जाकर दर्शन करता रहता हूँ तब यह देखकर दुख होता है कि उन्हें जीते जी भुला दिया गया है। जनता पार्टी तोड़ने का आरोप से लेकर भ्रस्टाचार के आरोप लगे जो साबित नहीं हो सके, गत 5 दशकों में जॉर्ज सा का भारतीय राजनीति में जो योगदान रहा उसे भले ही भुलाने की कोशिश हो रही हो लेकिन उसे झुठलाया नहीं जा सकता।
हाँ, भा ज पा को वैधानिकता और मजबूती जॉर्ज साहेब के एन डी ए में शामिल होने से मिली, यह तथ्य भी समाजवादी आन्दोलन के इतिहास में उनके जीवन की सबसे बड़ी भूल-विकृति तथा कमजोरी के तौर पर दर्ज किया जायेगा।
शायद लंबे संघर्ष और साथियों के साथ हुए कड़वे अनुभवों के बाद वे इस नतीजे पर पहुंच चुके थे कि केवल संघर्ष से नहीं सरकार से जुड़कर समाज और देश की तरक्की में ज्यादा योगदान किया जा सकता है। अपने 2 तरीके से तमाम समाजवादी नेताओं ने इस सोच को अपनाया परंतु यह सोच समाजवादियों की मुख्य धारा का सोच नहीं बने, इसके लिए सभी समाजवादियीं को विशेष प्रयास करने की जरूरत है।
मुझे लगता है आज समाजवादियों के सामने मुख्य मुद्दा मोदी-संघ की कॉपोरेट मुखी सरकार को हटाना है ,चुनावी नतीजा निकालने के लिए मोदी जी के उम्मीदवार के सामने विपक्ष का एक उम्मीदवार खड़ा करना जरूरी है। इसके साथ कांग्रेस बदले तथा अपनी नीतिगत और एतिहासिक भूलों को स्वीकार करे, इस दिशा में भी व्यापक विपक्षी एकजुटता बनाते हुए समाजवादियों को विशेष प्रयास करना होगा। समाजवादियों को अपनी पूरी ताकत इन्ही उद्देश्यों को हासिल करने पर लगाना चाहिए।