The Trade Union Leader

Mahendra N Bajpayee

Railway Strike of 1974 – A Flash Back

By Mahendra N Bajpayee

जार्ज फर्नांडिस बम्बई के मशहूर ट्रेड यूनियन नेता थे। वे बम्बई के हास्पिटल, टैक्सी, ट्रांसपोर्ट, होटल तथा मजदूरों से जुड़े अनेकों मजदूर संगठनों के हिन्द मजदूर पंचायत के अध्यक्ष थे। साथ ही वे समाजवादी पार्टी के भी अध्यक्ष थे। वर्ष 1972 में के जेनरल काउंसिल की बैठक दिल्ली में आयोजित थी। AIRF की बैठक से पहले AIRF और NFIR के नेताओं में आपसी सहमति बनी कि रेलकर्मियों की मांगों को लेकर संयुक्त रूप से आंदोलन किया जाये, क्योंकि विभिन्न फोर्मों पर लिखित और आपसी बात चीत से सरकार मजदूरों की मांगों के प्रति दिलचस्पी नहीं ले रही थी। दूसरी ओर सरकार यह भी कह रही थी कि बोनस की मांग तो राजनीतिक मांग है। इसी बीच जार्ज साहब National Railway Mazdoor union, बम्बई के अध्यक्ष चुन लिये गये। यह यूनियन AIRF से सम्बद्ध Central रेलवे मजबूत संगठन है। इसके बाद वर्ष 1973 के अक्टूबर माह में South Central Railway Mazdoor union, सिकंदराबाद में AIRF के सम्मेलन में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ, जिसमें एक दल के दो बड़े नेताओं के बीच चुनाव हुआ। पहले से AIRF के अध्यक्ष पीटर अलवरीस और जार्ज फर्नांडिस के बीच कडा मुकाबला था। वोटों की गिनती में जार्ज विजयी हुए। साथ ही। हड़ताल की तिथि फरवरी 1974 में तय हो गई। हड़ताल के लिए तैयारी पूरी नहीं देख, नये अध्यक्ष जार्ज ने कार्य कारिणी समिति की बैठक बुला कर हड़ताल की तिथि को आगे बढ़ाने का फैसला किया और हड़ताल की सफलता के लिए बड़े संगठन की घोषणा की। इस संगठन का नाम NCCRS रखा गया, जिसमें रेल में कार्य रत सभी एसोसिएशन, NFIR को छोड़कर (उसने पहले ही साथ छोड़ दिया था) यूनियन और सभी सेन्टरल ट्रेड यूनियन संगठनों को सम्मिलित कर हड़ताल के सही संचालन और राय के लिए गठित किया।

संयोग ऐसा था कि लैलाजी गर्भवती थीं, फिर भी जार्ज जो अपने निश्चय के पक्के थे, प्रचार में कहीं कोई कमी नहीं आने दिए। उन दिनों टेलिफ़ोन की सुविधा आज जैसी नहीं थी। फिर भी जार्ज साहब ने रेलकर्मियों के अंदर ऐसा जोश भरने का काम किया कि जब भी वे ट्रेन से यात्रा करने के लिए निकलते अगले जंक्शन स्टेशन पर रेल फोन आदि से सूचना मिल जाती कि जार्ज साहब अमूक गाड़ी से आ रहे हैं और यह समाचार रेल कर्मियों के लिए काफी था। बडी संख्या में लोग जिस कोच में वे यात्रा रत रहते, वहीं लोगों का माईक के साथ जुटना शुरू हो जाता। ट्रेन के रुकते ही उनका भाषण प्रारंभ हो जाता। वे स्वयं NCCRS के Convenor थे तथा इसका गठन AIRF से लेकर शाखा स्तर तक किया गया था। हड़ताल से होने वाले असर से भी वे परिचित थे। उन्होंने सरकार से बात चीत माध्यम से समझौता द्वारा कर्मचारियों की मांगों का हल निकालना चाहते थे। 29 एवं 30 अप्रैल 1974 को वार्तालाप हुई और अधिकांश मांगों पर सहमति भी बन गयी, शेष बची मांगो पर एक बैठक की आवश्यकता थी। कल मीटिंग की बात आई तो जार्ज साहब ने कहा कि कल 1 मई है और उनका मजदूर दिवस का कार्यक्रम लखनऊ में पहले से तय है, अतः अगली तिथि 2 मयी को रखी जाय और सहमति भी बन गयी। 1 मई को हवाई मार्ग से जार्ज को लखनऊ जाना था। वे नियत समय पर हवाई अड्डा पर प्रतिरक्षा थे। किसी को भी विमान के संबंध में कोई जानकारी नहीं और आठ घंटे से ज्यादा विलंब से लखनऊ के लिए वायुयान मिला। उसी विमान से वे लखनऊ पहुंचे। उनकी प्रतीक्षा में मजदूर उनकी बातों को सुनने के लिए मैदान में डटे रहे। रात 11.30 लगभग कार्यक्रम समाप्त कर वे लखनऊ रेलवे स्टेशन के रिटायरिंग रूम पहुंच अपने लोगों से थोड़ी बात कर सोने के लिए गये। थोड़ी देर बाद बाहर से दरवाजे पर ठक ठक की आवाज सुनाई दी। दरवाजा खोलने पर सिक्युरिटी के लोग मिले और उनलोगों ने उनसे उनके साथ चलने का आग्रह किया। जार्ज के मन में 2 मयी को होने वाली बाकी बैठक की बात थी, पर उन्हें Air Force के जहाज से दिल्ली लाकर तिहाड़ जेल में बंद कर दिया गया। AIRF के अधिकांश नेताओं को पकड़ कर जेल भेज दिया गया। AIRF से सम्बद्ध यूनियन के नेताओं को भी जेलों में बंद करने से लेकर, पैरा 14/2 के तहत वगैर किसी अभियोग पत्र या विभागीय जांच के ही नौकरी की समाप्ति, रेलवे क्वार्टर से जबरदस्ती निकासी, सस्पेंड कर कर्मचारियों में भय के माहौल को पैदा करनाआदि। दूसरी ओर NFIR लोगों को हड़ताल में हिस्सा न लेने के लिए loyal increment के नाम पर विशेष वेतन देना, उनके बच्चे और दूसरे लोगों को loyal quota नौकरी में नयी बहाली आदि। सारे जुल्मों को सहकर भी AIRF का कैडर डटा रहा। जहां के नेताओं को 2 मयी को arrest किया गया, वहाँ उसी रोज से और बाकी जगहों में 8 मई से 28 मई तक हडताल चली, जो रेलवे के इतिहास में न कभी हुआ और नहीं इतनी लंबी हड़ताल भविष्य में होने की संभावना है। जार्ज के नेतृत्व पर रेल मजदूरों ने भरोसा किया। उस हड़ताल में नेशनल रेलवे मजदूर यूनियन के महामंत्री सहित 4 लोगों का बलिदान हुआ। 1968 के एक दिन के सांकेतिक हड़ताल में 9 लोगों ने, जिसमें रेल कर्मी का एक बेटा भी था 8 रेलकर्मियों ने शहादत दी। 1960 के हड़ताल में 5 रेलकर्मियों ने शहादत दी। AIRF का इतिहास बलिदान है।

जार्ज साहब के सूझबूझ के बदौलत आज रेलकर्मियों से शुरू होकर तमाम कर्मचारियों को बोनस, काम के घंटे का निर्धारण, समय पर प्रोन्नति, महंगाई भत्ता का भुगतान आदि संभव हो सका। मैं उनके स्वस्थ होने की कामना करता हूँ।

1974 की रेल हड़ताल

The Indian Railways Strike of 1974
The Indian Railways Strike of 1974

आज से 44 वर्ष पहले की बात है। AIRF ने पांच सूत्री मांगों के लिए रेल प्रशासन के समक्ष विभिन्न माध्यमों से अपनी मांगों के समर्थन में हर स्तर पर जोरदार ढंग से रखने का काम किया था। इसके लिए AIRF ने पहले रेल प्रशासन से विभिन्न फोर्मों पर बात रखी। पुनः अपने सभी मान्यता प्राप्त यूनियनों के द्वारा सभी महा प्रबंधकों को हड़ताल का नोटिस देने का काम किया। AIRF ने 1973 में अपने सिकन्दराबाद अधिवेशन में पुनः प्रस्ताव लाकर, सर्व सम्मत निर्णय से फरवरी 1974 में मांगों की पूर्ति न होने पर अनिश्चित कालीन हड़ताल की घोषणा की। साथ ही JCM(NC) सहित विभिन्न स्तरों पर लगातार उठाने का काम किया। इतना ही नहीं हडताल की तिथि को आगे बढ़ाने के लिए भी पुनः AIRF ने अपने General Council की बैठक में विचार कर तिथि को 08. 5 . 1974 तक बढ़ा दिया तथा वार्तालाप द्वारा मांगों की पूर्ति हेतु प्रयास किया, दसरी ओर तत्कालीन अध्यक्ष साथी जार्ज फर्नांडिस और दूसरे नेताओं ने पूरे देश में घूमकर हड़ताल के पक्ष में में वातावरण के लिए कोशिश किया।

सभी नेशनल ट्रेड यूनियन और रेलवे के कैटेगरी के संगठनों को मिलाकर NCCRS का गठन किया। सरकार में श्रीमती इंदिरा गांधी, प्रधानमंत्री थीं और वे किसी भी तरह से रेलकर्मियों की मांगों पर विचार नहीं करना चाहती थीं। सरकार की ओर से भी हड़ताल को तोड़ने की पूरी तैयारी कर ली गई थी। रेलमंत्री ललित नारायण मिश्र थे, जो प्रधानमंत्री के नजदीकी समझे जाते थे। AIRF के अध्यक्ष और NCCRS के CONVENOR साथी जार्ज ने रेलमंत्री से कहा कि रेल हड़ताल को नहीं टालने से देश का नुकसान होगा। बातचीत के माध्यम से रेलकर्मियों की मांगों पर विचार किया जाना चाहिए। अंततोगत्वा अप्रैल के अंत में वार्तालाप प्रारंभ हुआ तथा 30 अप्रैल के शाम तक अधिकांश मांगों पर सहमति बन गई। एक राउंड बैठक की और आवश्यकता थी। कल होकर 1 मई, मजदूर दिवस को पूरे देश में इस दिवस के अवसर पर होने वाली मीटिंगों को लेकर वार्तालाप की अगली तिथि 2 मई तय की गई। जार्ज और AIRF के नेताओं के साथ ही NCCRS के नेता भी इस वार्तालाप से संतुष्ट थे। कल यानी 1 मई 1974 को जार्ज साहब की मीटिंग लखनऊ में तय थी, जहां मजदूर दिवस की बैठक में जार्ज रेलकर्मियों के साथ ही अन्य मजदूरों को भी संबोधित करने वाले थे। जार्ज को फ्लाइट से जाना था, पर उस फ्लाइट को अकारण रोके रखा गया और अंततोगत्वा उस फ्लाइट को रात में उड़ान की मंजूरी मिली, ताकि जार्ज उस मीटिंग में हिस्सा न ले सकें। रात 10 बजे जार्ज लखनऊ पहुंचे और उनकी प्रतीक्षा में उस समय तक मजदूर मैदान में डटे रहे। जार्ज की मीटिंग समाप्त होते आधी रात हो गई। वहां से मीटिंग समाप्त कर जार्ज लखनऊ रेलवे स्टेशन के रीटायरिंग रूम पहुंच कर अपने लोगों से थोड़ी बात कर सोने जा रहे थे, तभी सुरक्षाकर्मियों ने उनसे चलने को कहा और वे तैयार हो गए। उनके मन में था कि बाकी मीटिंग के एजेंडा पर बातचीत के लिए उन्हें दिल्ली बुलाया गया है। पर बात बिल्कुल उल्टी निकली। जार्ज, AIRF, इसके Affiliates and NCCRS के नेताओं को जेलों में बंद कर दिया गया। इसके विरोध में बहुत सारी जगहों पर 2 मई से ही हड़ताल हो गई और बाकी जगहों पर रेलकर्मियों ने 8 मई से हड़ताल की। हड़ताली रेलकर्मियों और उनके परिवार के सदस्यों पर भयंकर जुल्म ढाए गए। क्वार्टरों से बहुतों को निकाला गया, उनके सामान फेंक दिए गए, हजारों रेलकर्मियों को जेलों में बंद कर दिया गया, धारा 14/2 में वगैर कोई अभियोग के नौकरियों से निकाल दिया गया तथा निकाले गए रेलकर्मियों के संबंध में कहा गया कि इनके विरुद्ध जांच करना संभव नहीं है, इसलिए वगैर किसी जांच के इन्हें रेल की नौकरी से remove किया जाता है। सरकार ने अपने कर्मचारियों को जो अपनी मांगों के लिए शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन और बातचीत के द्वारा अपनी मांगों को लेकर सरकार के समक्ष अपनी बात रखे थे, उसे अनसुनी कर सरकार का यह तरीका किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए शोभा नहीं देता। बाद में लोगों को जेलों से रिहा किया गया, धारा 14/2 में निकाले गए कुछ लोगों को महीनों और वर्षों के बाद नौकरी में उनके अपील को अधिकारियों द्वारा consider करते हुए बहाल किया गया। कुछ लोगों के अपील पर कोई निर्णय नहीं लिया गया। इस हड़ताल में नेशनल रेलवे मजदूर यूनियन (मध्य रेलवे) के महासचिव सहित 4 रेलकर्मियों की मौत हो गई। यही श्रीमती इंदिरा गांधी का समाजवादी चरित्र था। 1974 हड़ताल के शेष बचे रिमूव कर्मचारियों को 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी और मधु दंडवते, रेल मंत्री बने, उन्होंने आदेश पारित कर सभी रेलकर्मियों का रिमूवल समाप्त कर नौकरी में वापसी हुई।

मजदूर दिवस के अवसर पर मजदूर साथियों की जानकारी के लिए यह आवश्यक प्रतित हुआ, इस कारण इस जानकारी को दे रहा हूं। मजदूर एकता जिंदाबाद। मजदूर दिवस के अवसर पर अपने सभी साथियों को शुभकामनाएं। 1974 हड़ताल के महानायक साथी जार्ज फर्नांडिस के स्वास्थ्य लाभ की मंगल कामना।

Ex. VP, AIRF